अपडेट -6
बहू की चूत चुदाई के बाद बहुत देर तक हम दोनों बाहों में बाहें डाले चिपके लेटे रहे।बहू रानी के नंगे गर्म बदन की छुअन कितनी सुखद लग रही थी, उसे शब्दों में बताना मेरे लिए सम्भव नहीं है।‘पापा जी, आपने कर ही ली न अपने मन की! अब लाइट बंद कर दो और सो जाओ आप भी!’ बहू रानी उनींदी सी बोली।
‘इतनी जल्दी नहीं बेटा रानी, अभी तो एक राउंड तेरी इस गांड का भी लेना है।’ मैंने कहा और उसकी गांड को प्यार से सहलाया।‘नहीं पापा जी, वहाँ मैंने कभी कुछ नहीं करवाया. वहाँ नहीं लूंगी मैं आपका ये मूसल। फिर तो मैं खड़ी भी नहीं हो पाऊँगी।’ उसने साफ़ मना कर दिया।
‘अदिति बेटा, गांड में भी चूत जैसा ही मस्त मस्त मज़ा आता है लंड जाने से, तू एक बार गांड मरवा के तो देख, मज़ा न आये तो कहना!’‘न बाबा, बहुत दर्द होगा मुझे वहाँ! अगर आपका मन अभी नहीं भरा तो चाहे एक बार और मेरी चूत मार लो आप जी भर के!’ वो बोली।
‘अरे तू एक बार ट्राई तो कर लंड को उसमें, फिर देखना चूत से भी ज्यादा मज़ा तुझे तेरी ये चिकनी गांड देगी।’ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें कर कर के मैंने बहूरानी को गांड मरवाने को राजी किया, आखिर वो बुझे मन से मान गई मेरी बात- ठीक है पापा जी, जहाँ जो करना चाहो कर लो आप, पर धीरे धीरे करना!
‘ठीक है बेटा, अब तू जरा मेरा लंड खड़ा कर दे पहले अच्छे से!’मेरी बात सुन के बहूरानी उठ के बैठ गई और मेरे लंड को सहलाने मसलने लगी, जल्दी ही लंड में जान पड़ गई और वो तैयार होने लगा।फिर मैंने बहूरानी को अपने लंड पे झुका दिया, मेरा इशारा समझ उसने लंड को मुंह में ले लिया और कुशलता से चूसने लगी। कुछ ही देर में लंड पूरा तन के तमतमा गया, फिर मैंने उसे जल्दी से डोगी स्टाइल में कर दिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा जिससे वो अच्छे से पनिया गई, फिर लंड को उसकी चूत में घुसा कर चिकना कर लिया और फिर बाहर निकाल कर गांड के छेद पर टिका दिया।
गांड के छेद थोड़ा अपना थूक भी लगाया और बड़ी सावधानी से अदिति की कमर पकड़ कर लंड को उसकी गांड में घुसाने लगा।कुछ प्रयासों बाद मेरा सुपारा गांड में घुसने में कामयाब हो गया।
‘उई माँ… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मर गई पापा जी, निकाल लो इसे, बहुत दर्द हो रहा है वहाँ पे!’ बहू रानी दर्द से तड़प कर बोली।मगर मैंने उसकी बात को अनसुना करके धीरे धीरे पूरा लंड पहना दिया उसकी गांड में और रुक गया।अदिति ने अपनी गांड ढीली कर के लंड को एडजस्ट कर लिया।
‘आपने तो आज मार ही डाला पापा जी, बहुत दर्द हो रहा है, जैसे सुहागरात को मेरी चूत की सील टूटी थी उतना ही दर्द हुआ आज भी!’‘बस बेटा अब देख, कैसे मज़े आते हैं तुझे गांड में लंड के!’ मैंने कहा और लंड को आहिस्ता आहिस्ता आगे पीछे करने लगा।
बीच बीच में लंड पर थूक भी लगाता जाता ताकि उसका लुब्रीकेशन बना रहे।जल्दी लंड सटासट चलने लगा उसकी गांड में! बहूरानी को भी अब मज़ा आने लगा था और वो मस्त आवाजें निकालने लगी।
फिर मैंने उसकी चूत में दो उंगलियाँ घुसा दीं और गांड स्पीड से मारने लगा।‘हाँ पापा जी, अब मज़ा आने लगा है, जल्दी जल्दी स्पीड से करो आप!’ मैंने तुरन्त अपनी स्पीड बढ़ा दी और निश्चिन्त होकर दम से गांड मारने लगा।
फिर मैंने बहूरानी के बाल पकड़ कर अपनी कलाई में लपेट खींच लिए जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और इसी तरह चोटी खींचते हुए अब मैं बेरहमी से गांड में धक्के मारने लगा।
बहू को ससुर से गांड मरवा कर मज़ा आया
मस्त हो गई बहूरानी! वो भी अपनी गांड को मेरे लंड से ताल मिला कर आगे पीछे करने लगी।फिर मैं रुक गया मगर बहूरानी नहीं, वो अपनी ही मस्ती में अपनी कमर चलाते हुए लंड लीलती रही।कितना कामुक नज़ारा था वो!
मैं तो स्थिर रुका हुआ था और बहूरानी अपनी गांड को आगे पीछे करती हुई मज़े ले रही थी, जब वो पीछे आती हो मेरा लंड उसकी गांड में घुस जाता और वो आगे होती तो बाहर निकल आता! इस तरह बड़े लय ताल के साथ बहुत देर तक बहू खेलती रही।
मैं अब उसकी चूत में उंगली करता जा रहा था और वो अपने आप में मग्न कमर चलाये जा रही थी। आखिर इस राउंड का भी अंत हुआ और मैं उसकी गांड में ही झड़ गया और लंड सिकुड़ कर स्वतः ही बाहर आ गया और बहूरानी औंधी ही लेट गई बिस्तर पर…मैं भी उसी के ऊपर लेट गया और अपनी साँसें काबू करने लगा।
‘मज़ा आया बेटा?’ ‘हाँ, पापा जी. बहुत मज़ा आया, शुरू में तो बहुत दर्द हुआ, बाद में चूत जैसा ही मज़ा वहाँ भी आया।’ वो बोली और उठ कर कपड़े पहनने लगी।मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए और लेट गया।
‘चलो अब सो जाओ पापा, बहुत रात हो गई, तीन तो बजने वाले ही होंगे। पापाजी मैं जल्दी उठ के अँधेरे में ही नीचे चली जाऊँगी, आप आराम से सोते रहना!’ वो बोली।‘ठीक है बेटा, गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्ज़!’ मैं जम्हाई लेते हुए बोला।‘गुड नाईट पापा जी!’ वो बोली और मुझसे लिपट के सो गई।
तो मित्रो, इस तरह हम ससुर बहू लिपट कर सो गये।मेरी नींद खुली तो दिन चढ़ आया था, बहू रानी पता नहीं कब उठ कर चली गई थी पर उसके जिस्म की खुशबू अभी भी कोठरी में रची बसी थी।
हमारे यहाँ परिवार में शादी के बाद सोमवार को सत्यनारायण की कथा होती है तो कथा का आयोजन होते ही सारे मेहमान विदा हो हो के चले गये।अभिनव की छुट्टियाँ भी ख़त्म हो गईं तो वो भी बहू को ले के चला गया।
इस घटना के बहुत दिन बाद
इन सब बातों के बाद कई महीने यूं ही गुजर गए. मैं भी अदिति के साथ अपने उस रिश्ते को भुलाने की कोशिश करता रहा और समय के साथ धीरे धीरे वो सब बातें भूलती चली गईं. ज़िन्दगी फिर से पुरानी स्टाइल में चलने लगी.
अदिति बहूरानी का फोन हर दूसरे तीसरे दिन मेरी धर्मपत्नी के फोन पर आता ही रहता था. वो लोग ज्यादातर घर गृहस्थी और रसोई से सम्बंधित बातें ही करती थीं.
‘मम्मी, आज इनको पालक छोले की सब्जी खानी है जैसी आप बनाती हो, आप मुझे गाइड करो कैसे बनाना है’; ‘मम्मी आम का अचार डालना है आज, आप बता दो कैसे क्या क्या करते हैं’ इत्यादि इत्यादि. सास बहू की ऐसी ही घरेलू बातें होती रहतीं फोन पर.
हां अदिति मेरे बारे में अपनी सास से जरूर पूछ लेती हर बार कि पापा जी कैसे हैं. लेकिन बहूरानी ने मेरे फोन पर कभी भी फोन नहीं किया और न ही मैंने उसके फोन पर कभी किया. कभी कोई जरूरी बात होती भी तो अपने बेटे के फोन पर बात कर लेता था.
मैं बहूरानी के इस तरह के व्यवहार से बेहद संतुष्ट था. मुझसे कई बार अपनी चूत चुदवाने के बाद भी वो मेरे साथ बिल्कुल नार्मल बिहेव कर रही थी जैसे कि हम दोनों के बीच कुछ ऐसा वैसा हुआ ही न हो या वो मुझसे चुदवाने के पहले किया करती थी.
दिन यूं ही गुजर रहे थे. हालांकि मुझे अदिति बहूरानी के साथ बिताये वो अन्तरंग पल याद आते तो मन में फिर से उसकी चूत चाटने और चोदने की इच्छा बलवती हो उठती; उसके मादक हुस्न और भरपूर जवां नंगे जिस्म को भोगने की छटपटाहट और उसकी चूत में समा जाने की ललक मुझे बेचैन करने लगती. लेकिन मैं ऐसी कामुक कुत्सित इच्छाओं को बलपूर्वक मन में ही दबा देता था. आखिर वो मेरी बहूरानी, मेरे घर की लाज थी.
हालांकि उसके साथ इन अनैतिक रिश्तों की शुरुआत उसी की तरफ से अनजाने में ही हुई थी फिर बाद में वो और मैं दोनों चुदाई के इस सनातन खेल में लिप्त हो गए थे.
बहू रानी मेरे लम्बे मोटे दीर्घाकार लंड की दीवानी हो चुकी थी तो मैं भी उसकी कसी हुई चूत का दास हो चुका था. उसके यहां से जाने के बाद वो पागलपन, वो चाहतें धीरे धीरे स्वतः ही कमजोर पड़ने लगीं. अच्छा ही था एक तरह से. ऐसे अनैतिक रिश्ते भले ही कितना मज़ा दें लेकिन एक बार बात खुलने के बाद ज़िन्दगी में हमेशा के लिए जहर घोल जाते हैं; जीवन नर्क बन जाता है और इंसान खुद की और अपनों की नज़र में हमेशा के लिए गिर जाता है. कई लोग तो आत्महत्या तक कर डालते हैं.
समय गुजरने के साथ मैंने खुद पर काबू पाना सीख लिया और वो सब बातें मैंने सदा सदा के लिए दिमाग से निकाल दीं.
लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता; कोई कितनी भी चतुराई दिखा ले लेकिन होनी के आगे उसकी एक नहीं चलती.
एक दिन की बात है सुबह का टाइम था कोई आठ बजने वाले होंगे कि वाइफ के फोन की घंटी बजी. पत्नी किचन से चाय लेकर आ ही रही थी. उसने चाय टेबल पर रखी और फोन ले लिया.
“अदिति का फोन है.” वो मुझसे बोली.
“हां, अदिति कैसी है तू?”
जवाब में अदिति ने भी कुछ कहा.
“बहूरानी, मैं कैसे आ सकती हूं. तू तो जानती है घर संभालना इनके बस का नहीं. दूध वाला, सब्जी वाला, धोबी ये वो पचास झंझट होते हैं गृहस्थी में. और तू अपनी कामवाली को तो जानती ही है कितनी मक्कार है काम करने में, उसके सिर पर खड़े होकर काम करवाओ तभी करती है; अगर मैं तेरे पास आ गई तो समझ लो घर का क्या हाल करेगी वो और सबसे बड़ी बात तू तो जानती ही
है मेरे घुटने का दर्द; स्टेशन की भीड़ भाड़ में पुल चढ़ना उतरना मेरे बस का अब नहीं रह गया. हफ्ते दस दिन की ही तो बात है तू ही आ जा न यहां पर!” पत्नी बोली.
जवाब में अदिति ने क्या कहा मुझे नहीं पता.
“अच्छा ठीक है बहू, जमाना खराब है. मैं इनसे बात करके इन्हें कल भेज दूंगी, तू चिंता मत करना.”
कुछ देर सास बहू में और बातें हुईं और फोन कट गए.
“सुनो जी, आपके लाड़ले को कंपनी वाले दस दिन की ट्रेनिंग पर बंगलौर भेज रहे हैं. अदिति मुझे बुला रही थी वहां रहने के लिए. मैं तो जा नहीं पाऊँगी, आप ही चले जाओ बहू के पास कल शाम की ट्रेन से. वहां वो अकेली कैसे रहेगी. आप तो जानते हो ज़माना कितना ख़राब है आजकल!”
“अरे तो अदिति को यहीं बुला लो ना. गुड़िया की शादी के बाद से आई भी नहीं है वो!” मैंने कहा.
“मैंने तो कहा था उससे आने के लिए पर वो कह रही है कि अगले महीने उसका कोई एग्जाम है बैंक में पी ओ. का वो उसकी तैयारी कर रही है. अब उसके भी करियर की बात है. आप ही चले जाओ कल!” पत्नी ने कहा.
“ठीक है. मैं कल शाम को चला जाऊंगा.” मैंने संक्षिप्त सा जवाब दिया और चाय पीने लगा.
मेरे हां कहने के बाद पत्नी जी ने अदिति बहूरानी को तुरंत फोन मिलाया. फोन कनेक्ट होते ही- हां अदिति बेटा सुन, मैंने इनसे कह दिया है तेरे यहां जाने के लिए. ये कल शाम की ट्रेन से बैठ जायेंगे; और सुन मैं इनके साथ तेरे लिए दही बड़े भी भेज रही हूं इमली की चटनी के साथ, तेरे को बहुत पसंद हैं ना!
पत्नी जी के इतना कहते ही बहूरानी की हंसी की धीमी खनक मेरे कानों में पड़ी. सास बहू की कुछ और बातें हुईं और फोन कट गया.
“आप चाय पियो मैं जाती हूं अब. उड़द की दाल भिगो देती हूं. कल दही बड़े बना दूंगी आप ले जाना!” पत्नी जी मुझसे बोलीं और चली गयीं.
“मैं और अदिति बहूरानी अकेले एक ही घर में, और तीसरा कोई नहीं; वो भी पूरे दस दिन और दस रातें!” ऐसा सोचते हुए मेरे दिल की धड़कन असामान्य रूप से बढ़ गई. ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था कभी ये दिन भी हमारे जीवन में आयेंगे जब मैं और बहूरानी यूं अकेले रहेंगे एक ही घर में; जो बातें मैंने अपने दिलो दिमाग से बिल्कुल निकाल दीं थीं लेकिन वक़्त के एक पल ने सब कुछ बदल कर रख दिया था जैसे.
जब मैं और बहूरानी घर में अकेले होंगे तीसरा कोई नहीं होगा तो क्या मैं या वो अपने पर काबू रख सकेंगे?
शायद नहीं.
इतिहास खुद को पुनः दोहराने वाला था जल्दी ही.
अदिति के साथ की गई पिछली चुदाईयां फिर से सजीव हो उठीं. एक एक बात याद आने लगी. वो छत के ऊपर वाले अँधेरे कमरे में अदिति के साथ पहली चुदाई जिसमें उसे नहीं पता था कि वो अपने ससुर से चुदवा रही है, फिर बाद की चुदाई के नज़ारे मेरे दिमाग में से गुजरने लगे. कितने प्यार से लंड चूसती है मेरी बहूरानी और कितने समर्पित भाव से अपनी चूत मुझे देती है, जैसे
कोई अनुष्ठान, कोई यज्ञ हो. अब तो वो चूत लंड चुदाई जैसे शब्द भी खूब बोलती है चुदते टाइम.
ये सब पिछली बातें सोच सोच के मेरे लंड में फिर से जोश भरने लगा.
अब जब अदिति को तो पता चल ही चुका है कि मैं उसके पास परसों सुबह पहुंच जाऊंगा; तो क्या वो भी अभी मेरी ही तरह ही सोच रही होगी इस टाइम, क्या उसकी चूत भी मेरे लंड की याद में रसीली हो उठी होगी और उसकी पैंटी गीली हो गई होगी?
पर इन सवालों का फिलहाल मेरे पास कोई जवाब नहीं था.
तो अगले दिन शाम तक पत्नी जी ने मेरे जाने की तैयारियां कर दीं. दही बड़े, चटनी, आम नींबू के अचार, मूंग की दाल की बड़ी, पापड़ ये सब अच्छी तरह से पैक करके मुझे दे दिया. कुल मिलाकर कोई पांच सात किलो वजन तो हो ही गया था. मैंने अपनी तरफ से भी पूरी तैयारी कर ली थी; वैसे मुझे तैयारी करनी भी क्या थी. सिर्फ अपनी झांटें शेव करनी थी सो अपने लंड को बढ़िया चिकना कर लिया ताकि बहूरानी को मेरा लंड चूसने में, अगर वो चाहेगी, तो कोई परेशानी, कोई असुविधा न हो.
तो मित्रो मैंने जाने के लिए तत्काल में अपना आरक्षण सुबह ही करा लिया था. ऐ. सी. सेकेण्ड में कोई जगह नहीं मिली 18 वेटिंग आ रही थी, आप सबको तो पता ही है कि ऐ.सी. की वेटिंग बहुत कम कन्फर्म होती है. अगर ऐ.सी. टू के कई कोच लगे हों तो शायद हो भी जाय. पर मेरी वाली ट्रेन में ऐ.सी.टू का सिर्फ एक ही कोच लगता था. तो 18 वेटिंग कन्फर्म होने का सवाल ही नहीं था.
लेकिन सौभाग्य से ऐ.सी. थर्ड में तीन बर्थ उबलब्ध थीं मैंने फुर्ती से अप्लाई किया तो मेरी बर्थ कन्फर्म हो गई. हालांकि मुझे मिडल बर्थ मिली जो मुझे अच्छी नहीं लगती लेकिन अदिति बहूरानी से पुनर्मिलन में इन छोटी मोटी परेशानियों से कोई फर्क नहीं, अगर जनरल क्लास में भी जाना पड़ता तब भी मैं एक पैर पर खड़े होकर जाने को तैयार था.
मिडल और अपर बर्थ का एक फायदा भी होता है. आप नीचे बैठी लड़कियों या महिलाओं की क्लीवेज और मम्में बड़े आराम से तक सकते हैं निहार सकते हैं. आजकल की लेडीज दुपट्टा तो डालती नहीं, ऊपर से ब्रा भी स्टाइलिश पहनती हैं जिसमें उनके मम्मों का आकार प्रकार अत्यंत लुभावना होकर उभरता है, अपर बर्थ्स का ये सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है कि आप चाहो तो आराम से किसी हसीना के मस्त मस्त मम्मों का दीदार करते हुए आराम से चादर के नीचे लंड को हिला हिला के मुठ मार सकते हो कोई देखने वाला टोकने वाला नहीं.
नीचे बैठी हसीना को आप अपने ख्यालों में लाकर तरह तरह से चोदते हुए मूठ मार सकते हो.
तो उस दिन ट्रेन निर्धारित समय से बीस बाईस मिनट देरी से आई. मेरी वाली बर्थ के नीचे वाली लोअर बर्थ पर एक चौबीस पच्चीस साल की आकर्षक नयन नक्श वाली खूबसूरत महिला थी उसने ब्लैक टॉप और जीन्स पहन रखा था. वो एक हाथ में सिक्स इंच वाला स्मार्ट फोन लिये नेट सर्फ़ कर रही थी, दूसरे हाथ से एक अंग्रेजी पत्रिका के पन्ने भी पलटे जा रही थी. ट्रेन की खिड़की की तरफ वाले प्लग में उसने अपना लैपटॉप लगा रखा था.
ऐ.सी.कोच में ज्यादातर ऐसे ही नज़ारे देखने को मिलते हैं. हर कोई अपने आप को ख़ास और व्यस्त दिखलाने का प्रयास करता है.
सौभाग्य से नीचे वाली महिला, नहीं, उसे महिला कहना अनुचित होगा, लड़की के टॉप का गला कुछ ज्यादा ही बड़ा था जिससे उसके अधनंगे बूब्स के दर्शन मुझे बहुत पास से बड़ी अच्छी तरह से हो रहे थे, मतलब आँखें सेंकने यानि चक्षु चोदन का पूरा पूरा इंतजाम था.
उसके सामने वाली बर्थ पर एक ताजा ताजा जवान हुई छोरी थी जो किसी मोटी किताब के पन्ने पलट रही थी और एक नोटबुक में कुछ लिखती भी जा रही थी साथ में बार बार अपना मोबाइल भी चेक करती जाती, शायद उसका कल कोई एग्जाम था जिसकी तैयारी में थी.
यही सब देखते देखते मुझे नींद आने लगी साथ ही पेशाब भी लग आई थी. मैं उठा और टॉयलेट में घुसा और जल्दी जल्दी निबटने लगा. नज़र सामने पड़ी तो दीवार पर जगह जगह चूत के चित्र बने हुए थे साथ में कॉल गर्ल्स के फोन नम्बर शहर के नाम के साथ लिखे थे. हो सकता है ये असली कालगर्ल्स के नंबर हों या किसी ने किसी लड़की को परेशान करने के लिए उसके असली नम्बर शहर के नाम के साथ लिख दिए हों.
कई चित्रों में चूत में लंड घुसा था और चूत की शान में कई शायरी भी लिखीं थीं. ऐसे अश्लील चित्र हमारी ट्रेन्स के लगभग हर टॉयलेट में मिल जाते हैं. पता नहीं किस तरह के लोग ये सब गन्दगी फैलाते हैं. महिलायें भी ये सब देखती पढ़ती होंगी. कुछ सिरफिरे लोग किसी लड़की से चिढ़ कर उसका नंबर इस तरह शहर के नाम के साथ लिख देते हैं फिर लोग उन्हें कॉलगर्ल समझ कर फोन करते हैं.
अंत में उस बेचारी लड़की को वो नम्बर हटाना ही पड़ता है.
टॉयलेट से वापिस आकर मैं सोने की कोशिश करने लगा. मेरा स्टेशन सुबह पांच बजे आना था तो मैं सुबह चार बजे ही उठ गया.
Contd....
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